Ghazals of Nazeer Akbarabadi (page 7)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
दिल ठहरा एक तबस्सुम पर कुछ और बहा ऐ जान नहीं
दिल न लो दिल का ये लेना है न इख़्फ़ा होगा
दिल को ले कर हम से अब जाँ भी तलब करते हैं आप
दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया
दिल हम ने जो चश्म-ए-बुत-ए-बेबाक से बाँधा
दिल हर घड़ी कहता है यूँ जिस तौर से अब हो सके
दिखा कर इक नज़र दिल को निहायत कर गया बेकल
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर
देख ले जो आलम उस के हुस्न-ए-बाला-दस्त का
देख कर कुर्ती गले में सब्ज़ धानी आप की
देख कर कुर्ते गले में सब्ज़ धानी आप की
देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी
दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
दामान-ओ-कनार अश्क से कब तर न हुए आह
चितवन में शरारत है और सीन भी चंचल है
चितवन की कहूँ कि इशारात की गर्मी
चितवन दुरुस्त सीन बजा बातें ठीक-ठीक
चाहत के अब इफ़शा-कुन-ए-असरार तो हम हैं
चाह में उस की दिल ने हमारे नाम को छोड़ा नाम किया
बुतों की मज्लिस में शब को मह-रू जो और टुक भी क़याम करता
बुतों की काकुलों के देख कर पेच
भरे हैं उस परी में अब तो यारो सर-ब-सर मोती
बेजा है रह-ए-इश्क़ में ऐ दिल गिला-ए-पा
बज़्म-ए-तरब वक़्त-ए-ऐश साक़ी ओ नक़्ल ओ शराब
बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का
बैठो याँ भी कोई पल क्या होगा
बैठे हैं अब तो हम भी बोलोगे तुम न जब तक
बहर-ए-हस्ती में सोहबत-ए-अहबाब
बगूले उठ चले थे और न थी कुछ देर आँधी में