Ghazals of Nazeer Akbarabadi (page 5)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
कहा जो हम ने ''हमें दर से क्यूँ उठाते हो''
कभी तो आओ हमारे भी जान कोठे पर
कब ग़ैर ने ये सितम सहे चुप
जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
जो तुम ने पूछा तो हर्फ़-ए-उल्फ़त बर आया साहिब हमारे लब से
जो पूछा मैं ने याँ आना मिरा मंज़ूर रखिएगा
जो कुछ है हुस्न में हर मह-लक़ा को ऐश-ओ-तरब
जो कहते हो चलें हम भी तिरे हमराह बिस्मिल्लाह
जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
जो आवे मुँह पे तिरे माहताब है क्या चीज़
जिन दिनों हम को उस से था इख़्लास
झमक दिखाते ही उस दिल-रुबा ने लूट लिया
जाम न रख साक़िया शब है पड़ी और भी
जाल में ज़र के अगर मोती का दाना होगा
जहाँ है क़द उस का जल्वा-फ़रमा तो सर्व वाँ किस हिसाब में है
जब उस की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में हम असीर हुए
जब उस के ही मिलने से नाकाम आया
जब उस का इधर हम गुज़र देखते हैं
जब मैं सुना कि यार का दिल मुझ से हट गया
जब हम-नशीं हमारा भी अहद-ए-शबाब था
जब आँख उस सनम से लड़ी तब ख़बर पड़ी
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल फ़िगार भी
इश्क़ फिर रंग वो लाया है कि जी जाने है
इश्क़ का मारा न सहरा ही में कुछ चौपट पड़ा
ईसा की क़ुम से हुक्म नहीं कम फ़क़ीर का
इंकार हम से ग़ैर से इक़रार बस जी बस
इधर यार जब मेहरबानी करेगा
हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म