Ghazals of Nazeer Akbarabadi (page 4)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
लावे ख़ातिर में हमारे दिल को वो मग़रूर क्या
क्यूँ न हो बाम पे वो जल्वा-नुमा तीसरे दिन
क्या नाम-ए-ख़ुदा अपनी भी रुस्वाई है कम-बख़्त
क्या कासा-ए-मय लीजिए इस बज़्म में ऐ हम-नशीं
क्या कहीं दुनिया में हम इंसान या हैवान थे
क्या दिन थे वो जो वाँ करम-ए-दिल-बराना था
क्या अदा किया नाज़ है क्या आन है
कुलाल-ए-गर्दूं अगर जहाँ में जो ख़ाक मेरी का जाम करता
कुछ तो हो कर दू-बदू कुछ डरते डरते कह दिया
कुछ और तो नहीं हमें इस का ओजब है अब
किसी ने रात कहा उस की देख कर सूरत
किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब
किधर है आज इलाही वो शोख़ छल-बलिया
की तलब इक शह ने कुछ पंद अज़-हकीम-ए-नुक्ता-दाँ
खोली जो टुक ऐ हम-नशीं उस दिल-रुबा की ज़ुल्फ़ कल
खींच कर इस माह-रू को आज याँ लाई है रात
ख़याल-ए-यार सदा चश्म-ए-नम के साथ रहा
कौन याँ साथ लिए ताज-ओ-सरीर आया है
करने लगा दिल तलब जब वो बुत-ए-ख़ुश-मिज़ाज
कर लेते अलग हम तो दिल इस शोख़ से कब का
कल उस के चेहरे को हम ने जो आफ़्ताब लिखा
कल नज़र आया चमन में इक अजब रश्क-ए-चमन
कल मिरे क़त्ल को इस ढब से वो बाँका निकला
कल जो रुख़-ए-अ'रक़-फ़िशाँ यार ने टुक दिखा दिया
कई दिन से हम भी हैं देखे उसे हम पे नाज़ ओ इताब है
कहते हैं याँ कि ''मुझ सा कोई मह-जबीं नहीं''
कहते हैं जिस को 'नज़ीर' सुनिए टुक उस का बयाँ
कहने उस शोख़ से दिल का जो मैं अहवाल गया
कहा ये आज हमें फ़हम ने सुनो साहिब
कहा था हम ने तुझे तो ऐ दिल कि चाह की मय को तू न पीना