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नज़ीर अकबराबादी Ghazal In Hindi - Best नज़ीर अकबराबादी Ghazal Shayari & Poems - Page 2 - Darsaal

Ghazals of Nazeer Akbarabadi (page 2)

Ghazals of Nazeer Akbarabadi (page 2)
नामनज़ीर अकबराबादी
अंग्रेज़ी नामNazeer Akbarabadi
जन्म की तारीख1735
मौत की तिथि1830

शोर आहों का उठा नाला फ़लक सा निकला

शेवा-ए-नाज़ होश छल जाना

शहर-ए-दिल आबाद था जब तक वो शहर-आरा रहा

शब-ए-मह में देख उस का वो झमक झमक के चलना

सेहन-ए-गुलशन में चली फिर के हवा बिस्मिल्लाह

सज़ा-वार-ए-अरे-आरे हुए हैं

सरापा हुस्न-ए-समधन गोया गुलशन की क्यारी है

साक़ी ज़ुहूर-ए-सुब्ह ओ तरश्शह है नूर का

साक़ी ये पिला उस को जो हो जाम से वाक़िफ़

साक़ी शराब है तो ग़नीमत है अब की अब

सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का

सनम के कूचे में छुप के जाना अगरचे यूँ है ख़याल दिल का

सहर जो निकला मैं अपने घर से तो देखा इक शोख़ हुस्न वाला

सहर हम ने चमन-अंदर अजब देखा कल इक दिलबर

सफ़ाई उस की झलकती है गोरे सीने में

सब ठाठ ये इक बूँद से क़ुदरत की बना है

रुत्बा कुछ आशिक़ी में न कम है फ़क़ीर का

रुख़ परी चश्म परी ज़ुल्फ़ परी आन परी

रक्खी हरगिज़ न तिरे रख ने रुख़-ए-बदर की क़द्र

रखता है सदा होंट को जूँ गुल की कली चुप

रखता है गो क़दीम से बुनियाद आगरा

रहे जो शब को हम उस गुल के सात कोठे पर

क़त्ल पर बाँध चुका वो बुत-ए-गुमराह मियाँ

क़स्र-ए-रंगीं से गुज़र बाग़-ओ-गुलिस्ताँ से निकल

क़मर ने रात कहा उस की देख कर सूरत

फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है

फिर इस तरफ़ वो परी-रू झमकता आता है

पाया मज़ा ये हम ने अपनी निगह लड़ी का

निकले हो किस बहार से तुम ज़र्द-पोश हो

निगह के सामने उस का जूँही जमाल हुआ

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