नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 4)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
हम हाल तो कह सकते हैं अपना प कहें क्या
हस्तियाँ नीस्तियाँ याँ भी हैं ऐसी जैसे
हर इक मकाँ में गुज़रगाह-ए-ख़्वाब है लेकिन
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
गो सफ़ेदी मू की यूँ रौशन है जूँ आब-ए-हयात
ग़श खा के गिरा पहले ही शोले की झलक से
ग़रज़ न सर की ख़बर थी न पा का होश 'नज़ीर'
गए थे मिलने को शायद झिड़क दिया उस ने
इक दम की ज़िंदगी के लिए मत उठा मुझे
दूर-अज़-तरीक़ मुझ को समझियो न ज़ाहिदा
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
दीवानगी मेरी के तहय्युर में शब-ओ-रोज़
दिल की बे-ताबी ठहरने नहीं देती मुझ को
दिल की बेताबी नहीं ठहरने देती है मुझे
देखेंगे हम इक निगाह उस को
देखे न मुझे क्यूँकर अज़-चश्म-ए-हिक़ारत-ऊ
देख उसे रंग-ए-बहार ओ सर्व ओ गुल और जूएबार
देख ले इस चमन-ए-दहर को दिल भर के 'नज़ीर'
चमक है दर्द है कौंदन पड़ी है हूक उठती है
चलते चलते न ख़लिश कर फ़लक-ए-दूँ से 'नज़ीर'
भुला दीं हम ने किताबें कि उस परी-रू के
बे-ज़री फ़ाक़ा-कशी मुफ़्लिसी बे-सामानी
बंदे के क़लम हाथ में होता तो ग़ज़ब था
बाग़ में लगता नहीं सहरा में घबराता है दिल
बदन गुल चेहरा गुल रुख़्सार गुल लब गुल दहन है गुल
अश्कों के तसलसुल ने छुपाया तन-ए-उर्यां
अजब मुश्किल है क्या कहिए बग़ैर-अज़-जान देने के
ऐ चश्म जो ये अश्क तू भर लाई है कम-बख़्त
अभी कहें तो किसी को न ए'तिबार आवे