नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 12)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
देख ले जो आलम उस के हुस्न-ए-बाला-दस्त का
देख कर कुर्ती गले में सब्ज़ धानी आप की
देख कर कुर्ते गले में सब्ज़ धानी आप की
देख अक़्द-ए-सुरय्या हमें अंगूर की सूझी
दरिया ओ कोह ओ दश्त ओ हवा अर्ज़ और समा
दामान-ओ-कनार अश्क से कब तर न हुए आह
चितवन में शरारत है और सीन भी चंचल है
चितवन की कहूँ कि इशारात की गर्मी
चितवन दुरुस्त सीन बजा बातें ठीक-ठीक
चाहत के अब इफ़शा-कुन-ए-असरार तो हम हैं
चाह में उस की दिल ने हमारे नाम को छोड़ा नाम किया
बुतों की मज्लिस में शब को मह-रू जो और टुक भी क़याम करता
बुतों की काकुलों के देख कर पेच
भरे हैं उस परी में अब तो यारो सर-ब-सर मोती
बेजा है रह-ए-इश्क़ में ऐ दिल गिला-ए-पा
बज़्म-ए-तरब वक़्त-ए-ऐश साक़ी ओ नक़्ल ओ शराब
बना है अपने आलम में वो कुछ आलम जवानी का
बैठो याँ भी कोई पल क्या होगा
बैठे हैं अब तो हम भी बोलोगे तुम न जब तक
बहर-ए-हस्ती में सोहबत-ए-अहबाब
बगूले उठ चले थे और न थी कुछ देर आँधी में
अय्याम-ए-शबाब अपने भी क्या ऐश-असर थे
अव्वलन उस बे-निशाँ और बा-निशाँ को इश्क़ है
अंदाज़ कुछ और नाज़-ओ-अदा और ही कुछ है
अल्ताफ़ बयाँ हों कब हम से ऐ जान तुम्हारी सूरत के
ऐश कर ख़ूबाँ में ऐ दिल शादमानी फिर कहाँ
ऐ सफ़-ए-मिज़्गाँ तकल्लुफ़ बर-तरफ़
ऐ मिरी जान हमेशा हो तिरी जान की ख़ैर
ऐ दिल अपनी तू चाह पर मत फूल
अगर है मंज़ूर ये कि होवे हमारे सीने का दाग़ ठंडा