नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 11)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
होश-ओ-ख़िरद को कर दिया तर्क और शग़्ल जो कुछ था छोड़ दिया
हो क्यूँ न तिरे काम में हैरान तमाशा
हो कुछ आसेब तो वाँ चाहिए गंडा ता'वीज़
हो किस तरह न हम को हर दम हवा-ए-मतलब
हो के मह वो तो किसी और का हाला निकला
हर आन तुम्हारे छुपने से ऐसा ही अगर दुख पाएँगे हम
हँसे रोए फिरे रुस्वा हुए जागे बंधे छूटे
हैं दम के साथ इशरत ओ उसरत हज़ार-हा
है अब तो ये धुन उस से मैं आँख लड़ा लूँगा
है अब तो वो हमें उस सर्व-ए-सीम-बर की तलब
गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना
गुलज़ार है दाग़ों से यहाँ तन-बदन अपना
गर हम ने दिल सनम को दिया फिर किसी को क्या
गर ऐश से इशरत में कटी रात तो फिर क्या
गले से दिल के रही यूँ है ज़ुल्फ़-ए-यार लिपट
गए हम जो उल्फ़त की वाँ राह करने
दूर से आए थे साक़ी सुन के मय-ख़ाने को हम
दुनिया है इक निगार-ए-फरेबंदा जल्वा-गर
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
दिया जो साक़ी ने साग़र-ए-मय दिखा के आन इक हमें लबालब
दिल यार की गली में कर आराम रह गया
दिल ठहरा एक तबस्सुम पर कुछ और बहा ऐ जान नहीं
दिल न लो दिल का ये लेना है न इख़्फ़ा होगा
दिल को ले कर हम से अब जाँ भी तलब करते हैं आप
दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया
दिल हम ने जो चश्म-ए-बुत-ए-बेबाक से बाँधा
दिल हर घड़ी कहता है यूँ जिस तौर से अब हो सके
दिखा कर इक नज़र दिल को निहायत कर गया बेकल
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर
धुआँ कलेजे से मेरे निकला जला जो दिल बस कि रश्क खा कर