नज़ीर अकबराबादी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का नज़ीर अकबराबादी (page 10)
नाम | नज़ीर अकबराबादी |
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अंग्रेज़ी नाम | Nazeer Akbarabadi |
जन्म की तारीख | 1735 |
मौत की तिथि | 1830 |
जो दिल को दीजे तो दिल में ख़ुश हो करे है किस किस तरह से हलचल
जो आवे मुँह पे तिरे माहताब है क्या चीज़
जिन दिनों हम को उस से था इख़्लास
झमक दिखाते ही उस दिल-रुबा ने लूट लिया
जाम न रख साक़िया शब है पड़ी और भी
जाल में ज़र के अगर मोती का दाना होगा
जहाँ है क़द उस का जल्वा-फ़रमा तो सर्व वाँ किस हिसाब में है
जब उस की ज़ुल्फ़ के हल्क़े में हम असीर हुए
जब उस के ही मिलने से नाकाम आया
जब उस का इधर हम गुज़र देखते हैं
जब मैं सुना कि यार का दिल मुझ से हट गया
जब हम-नशीं हमारा भी अहद-ए-शबाब था
जब आँख उस सनम से लड़ी तब ख़बर पड़ी
जाँ भी ब-जाँ है हिज्र में और दिल फ़िगार भी
इश्क़ फिर रंग वो लाया है कि जी जाने है
इश्क़ का मारा न सहरा ही में कुछ चौपट पड़ा
ईसा की क़ुम से हुक्म नहीं कम फ़क़ीर का
इंकार हम से ग़ैर से इक़रार बस जी बस
इधर यार जब मेहरबानी करेगा
हुस्न उस शोख़ का अहा-हाहा
हूँ तेरे तसव्वुर में मिरी जाँ हमा-तन-चश्म
हम में भी और उन्हों में पहले जो यारियाँ थीं
हम देखें किस दिन हुस्न ऐ दिल उस रश्क-ए-परी का देखेंगे
हम अश्क-ए-ग़म हैं अगर थम रहे रहे न रहे
हम ऐसे कब थे कि ख़ुद बदौलत यहाँ भी करते क़दम नवाज़िश
हुई शक्ल अपनी ये हम-नशीं जो सनम को हम से हिजाब है
हुई शक्ल अपनी ये हम-नशीं जो सनम को हम से हिजाब है
हुए ख़ुश हम एक निगार से हुए शाद उस की बहार से
हुए ख़ुश हम एक निगार से हुए शाद उस की बहार से
हुआ ख़ुर्शीद के देखे से दूना इज़्तिराब अपना