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एक नज़्म - नज़ीर अहमद नाजी कविता - Darsaal

एक नज़्म

हवा चली हवा चली

घने तवील जंगलों को नींद से जगा चली

अदा-ए-ख़ामुशी को गुदगुदा चली

ख़िज़ाँ की ज़र्द सेज से किसी की याद

आँखें मलती उठ खड़ी

चिराग़-ए-दर्द ले के सर्द हाथ पर

भटक के पात पात पर

थकी थकी से रौशनी लुटा चली

मैं अजनबी हूँ जिस के सर पे धूप का कड़ा सिरा

गिरा हूँ राह भूल कर

गए ज़माने के मुहीब कुंड में

फँसा पड़ा हूँ पंछियों पशुओं के प्यासे झुण्ड में

ये बेबसी तो खा चली

बिसात-ए-दिल पे नक़्शा-ए-शिकस्त-दम बिछा चली

मगर वो मंद मंद मुस्कुराती मौत

भर के जाम-ए-ज़िंदगी

मुझे न अब पिलाएगी

कि आज उस की याद भी

चहार सम्त दूरियों की तीरगी सजा चली

हर इक निशाँ मिटा चली

हवा चली

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In Hindi By Famous Poet Nazeer Ahmad Naji. is written by Nazeer Ahmad Naji. Complete Poem in Hindi by Nazeer Ahmad Naji. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.