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हम यूँही बिखरे नहीं हर-सू ख़स-ओ-ख़ाशाक में - नज़र जावेद कविता - Darsaal

हम यूँही बिखरे नहीं हर-सू ख़स-ओ-ख़ाशाक में

हम यूँही बिखरे नहीं हर-सू ख़स-ओ-ख़ाशाक में

हैं नुमू-बर-दोश रंग-ओ-बू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

उस के होने का गुमाँ रहता है मेरे आस-पास

हर तरफ़ रच-बस गई ख़ुश्बू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

हो समर-आवर हमारी आबला-पाई कहीं

चैन आ जाए कसी पहलू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

चाहिए होती है किश्त-ए-ज़र को जब भी कुछ नुमू

मैं बहा देता हूँ कुछ आँसू ख़स-ओ-ख़ाशाक में

जानती है वो बसीरत तक को उलझाने का फ़न

जौ कशिश है सूरत-ए-जादू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

जब उधर उठते हैं ताले-आज़माओं के क़दम

बुझने लगते हैं इधर जुगनू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

ये तो ऐ 'जावेद' गुज़रे मौसमों की राख है

आख़िरश क्या ढूँढता है तू ख़स-ओ-ख़ाशाक मैं

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In Hindi By Famous Poet Nazar Javed. is written by Nazar Javed. Complete Poem in Hindi by Nazar Javed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.