अपने होने की अर्ज़ानी ख़त्म हुई
अपने होने की अर्ज़ानी ख़त्म हुई
मुश्किल से ये तन-आसानी ख़त्म हुई
तुझ को क्या मालूम हमारी बीनाई
कैसे हो कर पानी-पानी ख़त्म हुई
बहता है चुप-चाप बिछड़ कर चोटी से
दरिया की पुर-शोर रवानी ख़त्म हुई
मिट्टी की आवाज़ सुनी जब मिट्टी ने
साँसों की सब खींचा-तानी ख़त्म हुई
दिल पर सारे मौसम बीत गए 'जावेद'
यानी खुशबू-दार कहानी ख़त्म हुई
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