इस चश्म-ए-सियह-मस्त पे गेसू हैं परेशाँ
मय-ख़ाने पे घनघोर घटा खेल रही है
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दिल महव-ए-तमाशा-ए-लब-ए-बाम नहीं है
किस तवक़्क़ो' पे शरीक-ए-ग़म-ए-याराँ होंगे
शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया
फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले
इसी ख़याल में हर शाम-ए-इंतिज़ार कटी