शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

शहर-ए-आलाम का शहरयार आ गया

सर-बरहना मिरा ताजदार आ गया

सुब्ह-ए-ख़ंदाँ लिए रू-ए-ताबाँ लिए

शाम-ए-ग़ुर्बत तिरा ग़म-गुसार आ गया

सब्र अर्ज़ां हुआ जब्र लर्ज़ां हुआ

साहब-ए-शान-ए-सद-इख़्तियार आ गया

नाला-कारो उठो सोगवारो उठो

बे-क़रारो कोई बे-क़रार आ गया

काएनात अपनी है अब हयात अपनी है

ग़मकशो ग़म-ज़दो ग़म-गुसार आ गया

ताज़ा अब ग़म न कर ख़म को अब ख़म न कर

साक़िया हासिल-ए-इंतिज़ार आ गया

जाम छलका दिया शो'ला भड़का दिया

याद आख़िर ज़ुलेख़ा का प्यार आ गया

रात खुलने लगी चाँदनी धुल गई

माह-वश मह-शिकन मह-शिआर आ गया

ज़ख़्म-ए-पिन्हाँ महक ताइर-ए-जाँ लहक

गुल-बदन गुल-जबीं गुल-ए-एज़ार आ गया

बात क्यूँ रोक ली आँख क्यूँ नम हुई

मुझ को देखो मुझे ए'तिबार आ गया

आप सोचें नज़र किस लिए मस्त है

आप के साथ अब्र-ए-बहार आ गया

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