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अजब इक वक़्त गुलशन में ये पैग़ाम-ए-बहार आया - नज़र बर्नी कविता - Darsaal

अजब इक वक़्त गुलशन में ये पैग़ाम-ए-बहार आया

अजब इक वक़्त गुलशन में ये पैग़ाम-ए-बहार आया

फ़ज़ा ही साज़गार आई न मौसम साज़गार आया

सुनाऊँ क्या मैं अपनी दास्तान-ए-ग़म तुझे हमदम

वो आया अपनी महफ़िल में मगर बेगाना-वार आया

तबस्सुम ने किसी के रूह फूंकी गुल्सितानों में

शगूफ़ों को जवानी का यक़ीन-ओ-ए'तिबार आया

उसी को लोग कहते हैं सुरूर-ओ-कैफ़ का आलम

सुराही ख़त्म हो जाने पे हल्का सा ख़ुमार आया

अजब इक महवियत थी लोग दीवाना समझते थे

तिरे कूचे में कुछ दिन इस तरह मैं भी गुज़ार आया

करो ऐ हम-सफ़ीरो एहतिमाम-ए-जश्न-ए-आज़ादी

ख़िज़ाँ रुख़्सत हुई लो झूम कर अब्र-ए-बहार आया

'नज़र' ने ख़ुद भी देखा है जमाल-ए-यार का आलम

जो उन के रू-ब-रू पहुँचा वही कुछ बे-क़रार आया

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In Hindi By Famous Poet Nazar Barni. is written by Nazar Barni. Complete Poem in Hindi by Nazar Barni. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.