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एहसास - नाज़ बट कविता - Darsaal

एहसास

उस लम्स का कोई नाम तो हो जो तुझ को सोच के जगता है

जो तेरे ज़िक्र के आते ही रग रग में दौड़ने लगता है

क्यूँ तेरे नाम को सुनते ही मिरी साँस महकने लगती है

एहसास नशे में होता है हर फ़िक्र बहकने लगती है

इक नादीदा एहसास मिरी पोरों में घुलने लगता है

इक बंद दरीचा हसरत का ख़्वाबों में खुलने लगता है

जब चाँद निकल कर बादल से आँखों में सपना बोता है

इक ख़्वाहिश की तन्हाई से बेदार जुनूँ जब होता है

जब दश्त-ए-तलब में प्यास मिरी आँखों को निगलने लगती है

जब आस उमीद की दुनिया में इक शाम सी ढलने लगती है

जिस वक़्त ग़मों की वहशत का इक साया मुझ पर झुकता है

उस वक़्त तिरा एहसास मिरे पहलू में आ कर रुकता है

और उस एहसास के छूते ही मैं ताबिंदा हो जाती हूँ

मिरी साँसें चलने लगती हैं फिर से ज़िंदा हो जाती हूँ

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In Hindi By Famous Poet Naz Butt. is written by Naz Butt. Complete Poem in Hindi by Naz Butt. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.