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अल-अमाँ अल-अमाँ - नाज़ बट कविता - Darsaal

अल-अमाँ अल-अमाँ

सुब्ह से शाम तक

सिलसिला ज़ीस्त का

किस क़दर है कठिन किस क़दर बे-अमाँ

लम्हा लम्हा सिसकती हूई ज़िंदगी

हर क़दम पर बिलक्ती हूई ज़िंदगी

ख़्वाहिशों की असीरी पे नौहा-कुनाँ

हर घड़ी जिस्म-ओ-जाँ

रूह घायल ख़राशों के दिल पर निशाँ

रोज़-ए-अव्वल से जारी-ओ-सारी यहाँ

वहशतों का समाँ

कोई पल भी अज़िय्यत से ख़ाली नहीं

कौन सी आँख है जो सवाली नहीं

कोई वारिस नहीं कोई वाली नहीं

गुलशन-ए-ख़्वाब का कोई माली नहीं

ख़त्म होता नहीं शोर-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ

है अज़ल से अबद तक यही दास्ताँ

अल-अमाँ अल-अमाँ!!

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In Hindi By Famous Poet Naz Butt. is written by Naz Butt. Complete Poem in Hindi by Naz Butt. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.