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तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ - नाज़ बट कविता - Darsaal

तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ

तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ

तमाम उम्र मोहब्बत की वहशतों में रहूँ

ख़ुमार हसरत-ए-दीदार में रहूँ हर दम

सवाद-ए-इश्क़ यूँही तेरी शिद्दतों में रहूँ

ये ज़िंदगी की हरारत तिरे सबब से है

मैं लम्हा लम्हा जुनूँ की तमाज़तों में रहूँ

ये एहतिमाम-ए-शब-ओ-रोज़ हो मिरी ख़ातिर

तिरे ख़याल की रंगीन ख़ल्वतों में रहूँ

सँवारती हैं सदा जिस की चाहतें मुझ को

मिरी दुआ है कि मैं उस की हसरतों में रहूँ

ऐ अब्र-ए-वस्ल बरस और खुल के मुझ पे बरस

मैं भीगी भीगी हवा की शरारतों में रहूँ

शरीक-ए-शौक़-ए-सफ़र है अगर वो मेरा 'नाज़'

मैं क्यूँ न मौसम-ए-गुल की बशारतों में रहूँ

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In Hindi By Famous Poet Naz Butt. is written by Naz Butt. Complete Poem in Hindi by Naz Butt. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.