तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ
तिरा नसीब बनूँ तेरी चाहतों में रहूँ
तमाम उम्र मोहब्बत की वहशतों में रहूँ
ख़ुमार हसरत-ए-दीदार में रहूँ हर दम
सवाद-ए-इश्क़ यूँही तेरी शिद्दतों में रहूँ
ये ज़िंदगी की हरारत तिरे सबब से है
मैं लम्हा लम्हा जुनूँ की तमाज़तों में रहूँ
ये एहतिमाम-ए-शब-ओ-रोज़ हो मिरी ख़ातिर
तिरे ख़याल की रंगीन ख़ल्वतों में रहूँ
सँवारती हैं सदा जिस की चाहतें मुझ को
मिरी दुआ है कि मैं उस की हसरतों में रहूँ
ऐ अब्र-ए-वस्ल बरस और खुल के मुझ पे बरस
मैं भीगी भीगी हवा की शरारतों में रहूँ
शरीक-ए-शौक़-ए-सफ़र है अगर वो मेरा 'नाज़'
मैं क्यूँ न मौसम-ए-गुल की बशारतों में रहूँ
(509) Peoples Rate This