पहले दुख दर्द कई दिल में सँभाले मैं ने
पहले दुख दर्द कई दिल में सँभाले मैं ने
फिर किया ख़ुद को तिरे ग़म के हवाले मैं ने
क्यूँ खुले तुझ पे सफ़र में थी अज़ीयत कैसी
कब दिखाए हैं तुझे रूह के छाले मैं ने
तू ने हर गाम जो बख़्शे हैं अँधेरे मुझ को
उन अँधेरों में तिरे ख़्वाब उजाले मैं ने
तेरी तस्वीर मिरे पास थी यानी तू था
दिन तिरे हिज्र के इस ख़्वाब में टाले मैं ने
तेरे ग़म से किया दुनिया के ग़मों का चारा
यानी इक ख़ार से सब ख़ार निकाले मैं ने
शहर वालों ने इन्हें अब्र-ए-करम समझा नाज़
अपने आँसू जो हवाओं में उछाले मैं ने
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