बे-ख़बर होते होए भी बा-ख़बर लगते हो तुम
बे-ख़बर होते होए भी बा-ख़बर लगते हो तुम
दूर रह कर भी मुझे नज़दीक-तर लगते हो तुम
क्यूँ न आऊँ सज सँवर कर मैं तुम्हारे सामने
ख़ुश-अदा लगते हो मुझ को ख़ुश-नज़र लगते हो तुम
तुम ने लम्स-ए-मो'तबर से बख़्श दी वो रौशनी
मुझ को मेरी आरज़ूओं की सहर लगते हो तुम
जिस के साए में अमाँ मिलती है मेरी ज़ीस्त को
मुझ को जलती धूप में ऐसा शजर लगते हो तुम
क्यूँ तुम्हारे साथ चलने पर न आमादा हो दिल
ख़ुश्बू-ए-एहसास मेरे हम-सफ़र लगते हो तुम
'नाज़' तुम पर नाज़ करती है मोहब्बत की क़सम
ज़िंदगी भर की दुआओं का असर लगते हो तुम
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