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शिकवा जो मेरा अश्क में ढलता चला गया - नय्यर सुल्तानपुरी कविता - Darsaal

शिकवा जो मेरा अश्क में ढलता चला गया

शिकवा जो मेरा अश्क में ढलता चला गया

सारा ग़ुबार दिल का निकलता चला गया

रौशन किया उमीद ने यूँ जादा-ए-हयात

हर गाम पे चराग़ सा जलता चला गया

रास आ सकी सुकूँ को ना तदबीर-ए-ज़ब्त-ए-ग़म

आँखों से ख़ून दिल का उबलता चला गया

जिस पर मिरे फ़रेब-ए-तमन्ना को नाज़ था

वो दिन भी इंतिज़ार में ढलता चला गया

पिछले पहर जो शम्अ ने खींची इक आह-ए-सर्द

चेहरे का उन के रंग बदलता चला गया

बढ़ने लगी यक़ीन ओ गुमाँ में जो कश्मकश

व'अदा भी सुब्ह ओ शाम पे टलता चला गया

वो नौहा-ए-अलम हो कि 'नय्यर' नवा-ए-शौक़

हर नग़्मा एक साज़ में ढलता चला गया

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In Hindi By Famous Poet Nayyar Sultanpuri. is written by Nayyar Sultanpuri. Complete Poem in Hindi by Nayyar Sultanpuri. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.