यूँ ज़िंदगी की हम ने सियह रात काट दी
यूँ ज़िंदगी की हम ने सियह रात काट दी
बिन छत के घर में जैसे कि बरसात काट दी
आता हो मुल्क-ओ-क़ौम की इज़्ज़त पे जिस से हर्फ़
हम ने ख़ुदा-गवाह वो हर बात काट दी
गुज़री जो नागवार हमारे ज़मीर को
मिल भी गई तो हम ने वो सौग़ात काट दी
बन जाए वज्ह-ए-दुश्मनी जो दो घरों के बीच
बच्चों की हम ने ऐसी मुलाक़ात काट दी
तूफ़ाँ में भी ख़ुदा के हवाले रही हयात
यूँ हँस के हम ने गर्दिश-ए-आफ़ात काट दी
तर्क-ए-तअल्लुक़ात का अंजाम सोच कर
हम ने तमाम उम्र तिरे साथ काट दी
अहल-ए-ग़रज़ की चलने न दी कोई हम ने चाल
मतलब-परस्त लोगों की हर बात काट दी
जिन से न कुछ मिला हमें रुस्वाई के सिवा
उन दोस्तों की हम ने मुलाक़ात काट दी
'नय्यर' को ले चली थी जो शहर-ए-ग़ुरूर में
हम ने वो रहगुज़ार-ए-ख़ुराफ़ात काट दी
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