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ख़ानों में ख़ुद ही बट के अब इंसान रह गया - नय्यर क़ुरैशी गंगोही कविता - Darsaal

ख़ानों में ख़ुद ही बट के अब इंसान रह गया

ख़ानों में ख़ुद ही बट के अब इंसान रह गया

देखा जब अपना हश्र परेशान रह गया

पुरखों की शानदार हवेली का ज़िक्र छोड़

आबाद कर खंडर को जो वीरान रह गया

गर्द-ए-सफ़र में फूल से चेहरे उतर गए

आईना उन को देख के हैरान रह गया

दिल भर गया है अपना मसाफ़त के शौक़ में

मंज़िल है दूर रस्ता भी सुनसान रह गया

हम जागते थे मद्द-ए-मुक़ाबिल रहे मगर

ख़ामोश इंक़लाब था तूफ़ान रह गया

किस ने दिया था सुल्ह-ओ-सफ़ाई का मशवरा

बस्ती में हो के जंग का एलान रह गया

क़िस्मत का है ज़वाल कि मेहनत की है कमी

हम ने किया जो काम भी नुक़सान रह गया

हम ने दिया था ख़ून भी उस के लिए मगर

वो मर गया ग़रीब का एहसान रह गया

'नय्यर' ने सादगी से गुज़ारी है ज़िंदगी

मक्कारियों से अपनों की अंजान रह गया

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In Hindi By Famous Poet Nayyar Qureshi Gangohi. is written by Nayyar Qureshi Gangohi. Complete Poem in Hindi by Nayyar Qureshi Gangohi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.