कल उस के नेक बनने का इम्कान भी तो है
कल उस के नेक बनने का इम्कान भी तो है
मुजरिम ज़रूर है मगर इंसान भी तो है
चेहरा हसीं वो दुश्मन-ए-ईमान भी तो है
लेकिन नशात-ए-रूह का सामान भी तो है
ग़ुर्बत की ठोकरों में जो पल कर जवाँ हुआ
तूफ़ाँ के रू-ब-रू वही चट्टान भी तो है
कल तक उठी थीं जिस की शराफ़त पे उँगलियाँ
अपने किए पे आज पशेमान भी तो है
हूँ अपने दोस्तों की निगाहों में मोहतरम
मुझ को मिला ख़ुलूस का वरदान भी तो है
क़ुर्बत है उस की वज्ह-ए-क़रार-ओ-सुकूँ मगर
उस का शबाब हश्र का सामान भी तो है
समझा गया है जिस को शराफ़त का पासदार
बातिन में बद-शिआ'र वो शैतान भी तो है
क़ातिल तू घर पे कैसे कहूँ मैं बुरा भला
इज़्ज़त-मआब है मिरा मेहमान भी तो है
'नय्यर' जुनून-ए-शौक़ में रुस्वा हुआ तो क्या
उस की अलग समाज में पहचान भी तो है
(374) Peoples Rate This