ये सारा क़ज़िया तो हम से है इस से तुम को क्या
तुम अपने एक तरफ़ हो रहो हुआ सो हवा
Gulzar
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(487) Peoples Rate This
आईने से मुझ दल के तहय्युर को मिला देख
जावे भी फिर आवे भी कई शक्ल से हर बार
जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है
साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
देखा है कहीं गुल ने तुझे जिस की ख़ुशी से
जफ़ा का उस की गिला मत करो हुआ सो हुआ
बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़
ज़रा कीजिए ग़ौर हज़रत-सलामत