लोगों के फोड़ता फिरे शीशे
मोहतसिब को तो मस्ख़रा कहिए
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(391) Peoples Rate This
वाजिबी बात कहीं ज़रा कहिए
जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ
चटपटी दिल की बुझी यार के देखे से यूँ
जो बात मनअ' की है उसे कहिए क्यूँ
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़
बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
यार का वस्ल-ए-शबा-शब न हुआ था सो हुआ
किया अज़ल से है साने' ने बुत-परस्त मुझे
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
वो जो इक तोला कई माशा थी यारी तुम से