जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
उतना ही इधर देखो तो ये दीदा-ए-नम है
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(394) Peoples Rate This
आगे को बढ़ सके है न पीछे को हट सके
दिलदार हुआ ना-ख़ुश अब दिल का ख़ुदा-हाफ़िज़
चटपटी दिल की बुझी यार के देखे से यूँ
वो जो इक तोला कई माशा थी यारी तुम से
ईधर से सेते जाओ और ऊधर से फटता जाए
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ
वो यार हम से ख़फ़ा है तो हो हुआ सो हुआ
वाजिबी बात कहीं ज़रा कहिए
देखा है कहीं गुल ने तुझे जिस की ख़ुशी से
नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
यार का वस्ल-ए-शबा-शब न हुआ था सो हुआ
जहाँ में जो कई गुल-बदन ख़ुश-नयन है