इस माजरा को जा के कहूँ किस के रू-ब-रू
मेरी तो दौड़ हैगी तिरे आस्ताँ तिलक
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बहुतों ने जिसे अर्श पे बे-जान में देखा
आगे को बढ़ सके है न पीछे को हट सके
ईधर से सेते जाओ और ऊधर से फटता जाए
यार का वस्ल-ए-शबा-शब न हुआ था सो हुआ
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ
नागिन है ज़ुल्फ़-ए-यार न ज़िन्हार देखना
वाजिबी बात कहीं ज़रा कहिए
दीजे नहीं कसू को तो फिर लीजिए भी नहिं
आईने से मुझ दल के तहय्युर को मिला देख
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
वो यार हम से ख़फ़ा है तो हो हुआ सो हुआ