आगे को बढ़ सके है न पीछे को हट सके
याँ तक तिरे ख़याल में अब डट गया है दिल
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जितना कि है इफ़रात तिरी कम-निगही का
नासेह न बक ज़्यादा मिरा मान ये सुख़न
साने' मिरा वो है कि हो कैसी ही चोब-ए-ख़ुश्क
और सब 'मानी' ने तेरी तो बनाई तस्वीर
जफ़ा का उस की गिला मत करो हुआ सो हुआ
वो जो इक तोला कई माशा थी यारी तुम से
जावे भी फिर आवे भी कई शक्ल से हर बार
वाजिबी बात कहीं ज़रा कहिए
ईधर से सेते जाओ और ऊधर से फटता जाए
देखा है कहीं गुल ने तुझे जिस की ख़ुशी से
यार का वस्ल-ए-शबा-शब न हुआ था सो हुआ
फ़स्ल-ए-गुल में हर घड़ी ये अब्र-ओ-बाराँ फिर कहाँ