जो बात मनअ' की है उसे कहिए क्यूँ
जो बात मनअ' की है उसे कहिए क्यूँ
जो शय कि हराम हैगी उसे खइए क्यूँ
खोटा हो अगर दाम ही अपना यारो
सर्राफ़ को फिर ऐब अबस लइए क्यूँ
ख़तरा है सरीह जी का समझ देख तो जी में
जो राह कि मरते हों उधर जइए क्यूँ
जिस बस्ती में इंसाफ़ का कहीं नाम न होवे
उस बस्ती में फिर फ़े'ल-ए-अबस रहिए क्यूँ
बात अपनी पेश न जाती होवे
बे-फ़ाइदा फिर बोलना वहाँ चहिए क्यूँ
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