काली आग
बहुत ही गहरा सन्नाटा है रूह ख़ला में
ख़ुद को जो मैं ढूँढना चाहूँ
गुम हो जाती हूँ मैं उस में
कौन है मेरी ज़ात के अंदर
इक तो मैं हूँ
दूजा कौन छुपा है मुझ में
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बहुत ही गहरा सन्नाटा है रूह ख़ला में
ख़ुद को जो मैं ढूँढना चाहूँ
गुम हो जाती हूँ मैं उस में
कौन है मेरी ज़ात के अंदर
इक तो मैं हूँ
दूजा कौन छुपा है मुझ में
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