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ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था - नवाज़ असीमी कविता - Darsaal

ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था

ख़तर हवा-ए-मुख़ालिफ़ का दरमियान में था

मगर परिंदा मगन अपनी ही उड़ान में था

हमारा जुर्म तो यकसाँ था पर गिरफ़्त के बा'द

वो शख़्स हो के न हो मैं तो इम्तिहान में था

हमें हमारी ज़बाँ में सज़ा सुनाई गई

मगर क़ुसूर लिखा जाने किस ज़बान में था

तमाम शहर पे ग़ालिब था धूप का लश्कर

फ़सील-ए-शहर के बाहर मैं साएबान में था

वतन-परस्तों ने तारीख़ ही बदल डाली

नहीं तो ज़िक्र हमारा भी दास्तान में था

मए' मुसाफ़िर-ओ-मल्लाह नाव डूब गई

'नवाज़' नक़्स रखा जैसे बादबान में था

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In Hindi By Famous Poet Nawaz Asimi. is written by Nawaz Asimi. Complete Poem in Hindi by Nawaz Asimi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.