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जुनूँ पे छोड़ दी अब सारी ज़िंदगी मैं ने - नवाज़ असीमी कविता - Darsaal

जुनूँ पे छोड़ दी अब सारी ज़िंदगी मैं ने

जुनूँ पे छोड़ दी अब सारी ज़िंदगी मैं ने

ख़िरद को आग लगा दी अभी अभी मैं ने

फ़क़ीर-ए-शहर के शजरे को देखने के बा'द

अमीर-ए-शहर की दस्तार खींच ली मैं ने

हवाएँ इतनी ख़ुनुक थीं के ख़ून जमने लगा

तो तपते सेहरा की कुछ रेत ओढ़ ली मैं ने

तिलिस्म टूटा परिंदे से शाहज़ादी बनी

जो सर में कील ठुकी थी निकाल दी मैं ने

गुज़ारिशों को न मानो मगर ये याद रखो

कई सुनाए हैं फ़रमान-ए-तुग़लक़ी मैं ने

बुनी गई थी जो ख़्वाहिश के ताने-बाने से

मज़ार-ए-दिल से वो चादर उतार दी मैं ने

मिरे चराग़ों वसिय्यत तो देख लो मेरी

तुम्हारे हिस्से में लिख दी है रौशनी मैं ने

'नवाज़' इस लिए रहता है वो ख़फ़ा मुझ से

के उस की बात पे हामी नहीं भरी मैं ने

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In Hindi By Famous Poet Nawaz Asimi. is written by Nawaz Asimi. Complete Poem in Hindi by Nawaz Asimi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.