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नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था - कविता - Darsaal

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

नज़र से छुप गए दिल से जुदा तो होना था

इस एहतिमाम से तुम को ख़फ़ा तो होना था

वफ़ा ख़ुद अपने मुक़ाबिल हुई मोहब्बत में

तिरे सितम की कोई इंतिहा तो होना था

कहाँ पहुँच के रुके आप बेवफ़ाई से

लिहाज़ मेरी वफ़ा का ज़रा तो होना था

सँवर के आइना देखा तो हँस के फ़रमाया

वो सामने हैं मगर सामना तो होना था

अगर इधर से वो गुज़रे हैं बे-ख़याली में

क़रीब-ए-दिल कोई आवाज़-ए-पा तो होना था

वो ले गए हैं अगर बू-ए-गुल को साथ 'शजीअ'

कम-अज़-कम आज चमन में सबा तो होना था

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