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जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया - कविता - Darsaal

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

जज़्बा-ए-दर्द-ए-मुहब्बत ने अगर साथ दिया

बात बन जाएगी क़िस्मत ने अगर साथ दिया

आप उठेंगे कब आग़ोश-ए-तमन्ना से मिरी

ज़िंदगी का शब-ए-फ़ुर्क़त ने अगर साथ दिया

साथ देगी न कभी मेरी मोहब्बत मेरा

आप की चश्म-ए-इनायत ने अगर साथ दिया

नहीं मा'लूम कि अंजाम-ए-मोहब्बत क्या हो

ग़म का ख़ुद ग़म की हक़ीक़त ने अगर साथ दिया

कहीं गुमनाम न हो जाएँ वफ़ा में मेरी

मेरी रुस्वाई की शोहरत ने अगर साथ दिया

बद-गुमानी में मोहब्बत का इज़ाफ़ा होगा

ख़ुद मिरा मेरी मुसीबत ने अगर साथ दिया

चैन से होगी बसर अपनी जुदाई में 'शजीअ'

उन निगाहों की शरारत ने अगर साथ दिया

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