जिसे हम ने कभी देखा नहीं है
जिसे हम ने कभी देखा नहीं है
उसे क्या जाने क्या है क्या नहीं है
तिरी आँखों से दिल की वादियों तक
कोई भी राह-रौ पहुँचा नहीं है
जो प्यासी रूह को सैराब कर दे
वो बादल आज तक बरसा नहीं है
शजर के हो गए क्यूँ ज़र्द चेहरे
कोई पत्ता अभी सूखा नहीं है
मिरी तिश्ना-लबी पे हँसने वालो
खड़ा हूँ मैं जहाँ सहरा नहीं है
हुए हैं लोग प्यासे क़त्ल जब से
किसी दरिया पे अब पहरा नहीं है
तकब्बुर की चटानें हैं ये 'अहसन'
जो आया है यहाँ ठहरा नहीं है
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