दौलत शोहरत क़त्ल तबाही क्या क्या हैं पहचान न पूछ
दौलत शोहरत क़त्ल तबाही क्या क्या हैं पहचान न पूछ
आज वफ़ा के अफ़्सानों के कितने हैं उनवान न पूछ
झूट दग़ा, नफ़रत और रिश्वत ज़ेहनों के नीलाम हुए हैं
और तराज़ू में सोने के तुलते हैं ईमान न पूछ
जलती चिताएँ ख़ूनी मंज़र, चीख़ें, कर्ब और सन्नाटे
किस को हम इल्ज़ाम लगाएँ बस्ती है वीरान न पूछ
दर्द के बादल छाए हुए हैं जाने कब ये बरस पड़ें
भीगी भीगी सी आँखें हैं ठहरा है तूफ़ान न पूछ
तपता सूरज, रेत का दरिया, सुर्ख़ उजाले, काली रात
जाने कैसे इस धरती पर रहते हैं इंसान न पूछ
झुलसे चेहरे, ज़ख़्मी रूहें, ख़ून के धब्बे, ग़म के दाग़
आईने में देख के सूरत दुनिया है हैरान न पूछ
प्यासे लब और जलते ख़ेमे, तीर-ओ-ख़ंजर सीने में
नस्ल-ए-नौ पे उन के 'अहसन' कितने हैं एहसान न पूछ
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