महफ़िलों को गुज़ार पाए हम
महफ़िलों को गुज़ार पाए हम
तब कहीं ख़ल्वतों पे छाए हम
हैं उदासी के कोख-जाए हम
ज़िंदगी को न रास आए हम
खाद पानी बना दिया ख़ुद को
सिलसिले-वार लहलहाए हम
नस्ल तारों की ज़िद लगा बैठी
इस्तिआरे उतार लाए हम
रूह के होंठ सिल के ही माने
हरकतों से न बाज़ आए हम
फ़र्ज़ हम पर है रौशनी का सफ़र
नूर की छूट के हैं जाए हम
प्यास को प्यार करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाए हम
बस हमारे ही साथ रहती है
क्यूँ उदासी को इतना भाए हम
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