और तो अपनी क़िस्मत में क्या लिक्खा है
और तो अपनी क़िस्मत में क्या लिक्खा है
तेरे नाम की माला जपना लिक्खा है
कब तक मेरा नाम छुपाएगी सब से
हीर तिरे चेहरे पर राँझा लिक्खा है
अगर नहीं मैं तो फिर उस का नाम बता
जिस की क़िस्मत में मय-ख़ाना लिक्खा है
पढ़ने वाले पढ़ कर चुप हो जाते हैं
कोरे-काग़ज़ पर जाने क्या लिक्खा है
कोई भी युग हो कोई भी अफ़्साना
आशिक़ की तक़दीर में रोना लिक्खा है
(393) Peoples Rate This