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सुर्ख़ चश्म इतनी कहीं होती है बेदारी से - नवाब मोहम्मद यार ख़ाँ अमीर कविता - Darsaal

सुर्ख़ चश्म इतनी कहीं होती है बेदारी से

सुर्ख़ चश्म इतनी कहीं होती है बेदारी से

लहू उतरा है तिरी आँखों में ख़ूँ-ख़्वारी से

वक़्त रुख़्सत के तिरे ऐ मिरे जी के दुश्मन

थाम थाम आज रखा दिल को मैं किस ख़्वारी से

बस मैं आया जो तुम्हारे उसे चाहो सो करो

क्या सितम आदमी सहता नहीं लाचारी से

किस ने नज़रों में ख़ुदा जाने उसे मल डाला

नर्गिस आज आँख उठाती नहीं बीमारी से

क्या कहूँ वल्वला-ए-शौक़ को तेरे मैं 'अमीर'

घर में जाते हैं पराए तो ख़बरदारी से

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In Hindi By Famous Poet Navab Mohammad Yar Khan Ameer. is written by Navab Mohammad Yar Khan Ameer. Complete Poem in Hindi by Navab Mohammad Yar Khan Ameer. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.