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पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से - नौशाद अली कविता - Darsaal

पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से

पहले तो डर लगा मुझे ख़ुद अपनी चाप से

फिर रो दिया मैं मिल के गले अपने आप से

देखा है हाँ उसे है वो कुछ मिलता जुलता सा

मुतरिब की मीठी मीठी सुरीली अलाप से

थी बात ही कुछ ऐसी कि दीवाना हो गया

दीवाना वर्ना बनता है कौन अपने आप से

रहना है जब हरीफ़ ही बन कर तमाम उम्र

क्या फ़ाएदा है यार फिर ऐसे मिलाप से

आया इधर ख़याल उधर मह्व हो गया

कहने को था न जाने अभी क्या मैं अपने आप से

हम और लगाएँ अपने पड़ोसी के घर में आग

भगवान ही बचाए हमें ऐसे पाप से

'नौशाद' रात कैसी थी वो महफ़िल-ए-तरब

लगती थी दिल पे चोट सी तबले की थाप से

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In Hindi By Famous Poet Naushad Ali. is written by Naushad Ali. Complete Poem in Hindi by Naushad Ali. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.