ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है
ख़ुद मिट के मोहब्बत की तस्वीर बनाई है
इक शम्अ जलाई है इक शम्अ बुझाई है
आग़ाज़-ए-शब-ए-ग़म है क्यूँ सोने लगे तारे
शायद मिरी आँखों से कुछ नींद चुराई है
मैं ख़ुद भी तपिश जिस की सहते हुए डरता हूँ
अक्सर मिरे नग़मों ने वो आग लगाई है
जब याद तुम आते हो महसूस ये होता है
शीशे में परी जैसे कोई उतर आई है
हर-चंद समझता था झूटे हैं तिरे वादे
लेकिन तिरे वादों ने क्या राह दिखाई है
जो कुछ भी समझ ले अब मर्ज़ी है ज़माने की
शीशे की कहानी है पत्थर ने सुनाई है
माना कि मोहब्बत ही बुनियाद है हस्ती की
'नौशाद' मगर तुझ को ये रास कब आई है
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