दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
दीदा-ए-अश्क-बार ले के चले
हम तिरी यादगार ले के चले
दिल में तस्वीर-ए-यार ले के चले
हम क़फ़स में बहार ले के चले
ख़्वाहिश-ए-दीद ले के आए थे
हसरत-ए-इंतिज़ार ले के चले
सामने उस के एक भी न चली
दिल में बातें हज़ार ले के चले
हवस-ए-गुल में हम भी आए थे
दामन-ए-तार-तार ले के चले
जो मिरे साथ डूबना चाहे
मुझ को दरिया के पार ले के चले
तुम से अपना ही बार उठ न सका
हम ज़माने का बार ले के चले
हम न ईसा न सरमद ओ मंसूर
लोग क्यूँ सू-ए-दार ले के चले
भर के दामन में ख़ाक उस दर की
हम तो कू-ए-निगार ले के चले
ज़िंदगी मुख़्तसर मिली थी हमें
हसरतें बे-शुमार ले के चले
रूप नग़मों का दे के हम 'नौशाद'
अपने दिल की पुकार ले के चले
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