विरासत
तुम दे गए हो
बहुत सारी रिवायतें
रूसूमात
कि शायद
लाज़िम था तुम को
मेरे मुहर्रिकात
नज़र-बंद कर देना
मगर
महसूर रूहों का
सोज़-ए-मातम
शिगाफ़ कर देना चाहता है
ज़ंग-आलूद
बक्तर
कि दम घोंटतीं
बदकार हवाएँ
रिहा कर दें
सहाइफ़!!
और
नुमायाँ हो
नूर-ए-क़दीम
कि जद्द मेरे
अंधेरा बहुत गहरा है
दुआ करना
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