मैं ख़ुद गया न उस की अदा ले गई मुझे
मैं ख़ुद गया न उस की अदा ले गई मुझे
मक़्तल में रस्म-ए-पास-ए-वफ़ा ले गई मुझे
अंदर से खोखला जो था बैलून की तरह
चाहा जिधर हवा ने उड़ा ले गई मुझे
इक हर्फ़ था जो तुम ने सुना अन-सुना किया
अब ढूँडते फिरो कि सदा ले गई मुझे
साहिल से मेरा पाँव फिसलने की देर थी
इक मौज-ए-बे-पनाह बहा ले गई मुझे
बैठा था छुप के ओस की ठंडी फुवार में
आई कड़कती धूप उठा ले गई मुझे
जाता कहाँ कि आगे कोई रास्ता न था
अंधी गुफा में मेरी अना ले गई मुझे
'साबिर' मैं रेज़ा रेज़ा ख़ला में बिखर गया
इतनी बुलंदियों पे हवा ले गई मुझे
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