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कभी दहकती कभी महकती कभी मचलती आई धूप - नो बहार साबिर कविता - Darsaal

कभी दहकती कभी महकती कभी मचलती आई धूप

कभी दहकती कभी महकती कभी मचलती आई धूप

हर मौसम में आँगन आँगन रूप बदल कर छाई धूप

उस को ज़ख़्म मिले दुनिया में जिस ने माँगे ताज़ा फूल

जिस ने चाही छाँव की छतरी उस के सर पर छाई धूप

जाने अपना रूप दिखा कर किस ने पर्दा तान लिया

किस की खोज में आवारा है अँगनाई अँगनाई धूप

चढ़ते सूरज की किरनें हैं दौलत इज़्ज़त शोहरत शान

आख़िर आख़िर हर दीवार से यारो ढलती आई धूप

दानिश की अफ़्ज़ूनी अक्सर करती है दिल को गुमराह

तेज़ ज़ियादा हो तो छीने आँखों की बीनाई धूप

माथे पर सिन्दूर की बिंदिया थाली में कुछ सुर्ख़ गुलाब

नूर के तड़के ऊषा तट पर पूजा करने आई धूप

कौन बढ़ाए प्यार की पेंगें उस नट-खट बंजारन से

फिरने को तो नगरी नगरी फिरती है हरजाई धूप

जनम जनम के अँधियारे का जादू छन में टूट गया

'साबिर' आज मिरी कुटिया में चुपके से दर आई धूप

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In Hindi By Famous Poet Nau Bahar Sabir. is written by Nau Bahar Sabir. Complete Poem in Hindi by Nau Bahar Sabir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.