जब सुख़न मौज-ए-तख़य्युल से रवानी माँगे
जब सुख़न मौज-ए-तख़य्युल से रवानी माँगे
मुझ से हर लफ़्ज़ नई रूह-ए-मआ'नी माँगे
दिल वो दीवाना कि दरिया से तू प्यासा लौटे
सामने मौज-ए-सराब आए तो पानी माँगे
हाफ़िज़ा ज़ेहन का दर बंद किए बैठा है
दिल बहलने को कोई याद पुरानी माँगे
हुस्न सर-ता-ब-क़दम तुर्फ़ा-अदाई चाहे
इश्क़ ता-हद्द-ए-यक़ीं सादा-गुमानी माँगे
आइना देखूँ तो 'साबिर' ये गुमाँ होता है
अक्स मुझ से वो ख़त-ओ-ख़ाल-ए-जवानी माँगे
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