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बादल अम्बर पे न धरती पे शजर है बाबा - नो बहार साबिर कविता - Darsaal

बादल अम्बर पे न धरती पे शजर है बाबा

बादल अम्बर पे न धरती पे शजर है बाबा

ज़िंदगी धूप में सहरा का सफ़र है बाबा

तुम कहाँ आ गए शीशों की तमन्ना ले कर

ये तो इक संग-फ़रोशों का नगर है बाबा

हम हैं क़ैद-ए-दर-ओ-दीवार से आज़ाद हमें

जिस जगह रात गुज़ारी वही घर है बाबा

मन हो दरवेश तो फिर तन पे क़बा हो कि अबा

जोग बाना नहीं अंदाज़-ए-नज़र है बाबा

बत्न हर संग में देखे जो कोई पैकर-ए-नाज़

किस को हासिल वो सनम-साज़-नज़र है बाबा

सोच कर दश्त-ए-तमन्ना में क़दम रख 'साबिर'

इस मरूथल में ब-हर-गाम ख़तर है बाबा

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In Hindi By Famous Poet Nau Bahar Sabir. is written by Nau Bahar Sabir. Complete Poem in Hindi by Nau Bahar Sabir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.