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मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया - नातिक़ लखनवी कविता - Darsaal

मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया

मिरे मुक़द्दर में जो लिखा था नसीब से वो पहुँच न पाया

गिरा तो था आसमान से कुछ खजूर में रह गया अटक कर

मुसीबत आ तो गई थी लेकिन हुई वो आप उल्टे पाँव रुख़्सत

लगा जो था ज़िंदगी का काँटा निकल गया चार दिन खटक कर

वहाँ हैं अब हम कि क्या बताएँ वो पेच-ओ-ख़म हैं कि कुछ न पूछो

ये चाल राह-ए-तलब की देखो कि चल रही है मटक मटक कर

ये कैसी वहशत-असर ख़बर है पता तो ऐ बाग़बाँ लगाना

खड़े हुए कान क्यूँ गुलों के कली ने क्या कह दिया चटक कर

किया जो डर डर के अर्ज़-ए-मतलब तो मुझ से ये कह दिया उन्हों ने

सबक़ नहीं याद अभी ये तुम को सुना रहे हो अटक अटक कर

ख़ुद अपना रस्ता सुधार 'नातिक़' न फ़िक्र कर शैख़-ओ-बरहमन की

वहीं तो जाते हैं रास्ते सब कोई कहाँ जाएगा भटक कर

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In Hindi By Famous Poet Natiq Lakhnavi. is written by Natiq Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Natiq Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.