सब कुछ मुझे मुश्किल है न पूछो मिरी मुश्किल
आसान भी हो काम तो आसाँ नहीं होता
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Rahat Indori
Gulzar
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Anwar Masood
Habib Jalib
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सुब्ह-ए-पीरी में फिरा शाम-ए-जवानी का गया
रहती है शम्स-ओ-क़मर को तिरे साए की तलाश
क्या इरादे हैं वहशत-ए-दिल के
रिंदान-ए-बादा-नोश की छागल उठा तो ला
ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी
अव्वल अव्वल ख़ूब दौड़ी कश्ती-ए-अहल-ए-हवस
ढूँढती है इज़्तिराब-ए-शौक़ की दुनिया मुझे
जिस की हसरत थी उसे पा भी चुके खो भी चुके
किस को मेहरबाँ कहिए कौन मेहरबाँ अपना
मिले मुराद हमारी मगर मिले भी कहीं
पाबंद-ए-दैर हो के भी भूले नहीं हैं घर