रस्म-ए-तलब में क्या है समझ कर उठा क़दम
आ तुझ को हम बताएँ कि क्या माँग क्या न माँग
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Habib Jalib
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
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आख़िर को राहबर ने ठिकाने लगा दिया
दूसरों को क्या कहिए दूसरी है दुनिया ही
ऐ बादा-कश गई है मय-ए-ऐश किस के साथ
नहीं रुकता तो जा ख़ुदा-हाफ़िज़
खाइए ये ज़हर कब तक खाए जाती है ये ज़ीस्त
ये ख़ुदा की शान तो देखिए कि ख़ुदा का नाम ही रह गया
न मय-कशी न इबादत हमारी आदत है
मिल गए तुम हाथ उठा कर मुझ को सब कुछ मिल गया
जो सुनते हैं तो मैं मम्नून हूँ उन की इनायत का
हिचकियों पर हो रहा है ज़िंदगी का राग ख़त्म
रिया-कारी के सज्दे शैख़ ले बैठेंगे मस्जिद को
आ गई दिल की लगी बढ़ के रग-ए-जाँ के क़रीब